लॉक डाउन के बीच घर लौट रहे हर मजदूर की एक ही कहानी, आशियाने तक पहुंचने के लिए चुकानी पड़ रही है ये कीमत


-मजदूर-फैक्ट्री बंद कर दिया, राशन वाले राशन नहीं दे रहे थे, पैसे हमारे पास नहीं थे इसलिए घर के लिए निकल पड़े, घर पर खाने को तो मिल जाएगा..


-पांच हजार मजदूर निकले थे, सब रास्ते में अलग-अलग हो गए, मजदूरों ने बताया कि पैदल चलने की वजह से उनके पैरों में बेहद दर्द हो रहा है, वो लोग दर्द की दवाई खाते हुए आगे बढ़ते रहे..


-वो जोधपुर से आ रहे हैं, एक मजदूर ने कहा, पैदल चलकर आए 80 किमी इसके बाद एक ट्रक वाला मिल गया वो 1500 रुपये प्रति व्यक्ति लिया और लाकर कानपुर छोड़ दिया..


लखनऊ, 09 मई 2020, लॉकडाउन के बाद अपने घर लौटते मजदूरों की तस्वीरें आम हो चली हैं, मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब जैसी जगहों से मजदूर जो बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड के हैं, वो जा रहे हैं बहुत से मजदूर इतनी लंबी दूरी पैदल तय कर चुके हैं, रास्ते में अगर कुछ खाने को मिल गया तो खा लिया और कोई ट्रक वाला अगर दया दिखा दिया तो उस पर चढ़कर बनारस के पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड को जोड़ने वाले हाईवे पर ट्रकों पर चढ़े ऐसे बहुत से मजदूर नजर आ रहे हैं, इन मजदूरों के क्या हालात रहे, कितनी दूर पैदल चले, कितने दिन से चल रहे हैं, इन सारी चीजों को लेकर एक ट्रक पर सवार मजदूरों ने बताया कि वो जोधपुर से आ रहे हैं, एक मजदूर ने कहा पैदल चलकर आए 80 किलोमीटर इसके बाद एक ट्रक वाला मिल गया वो राजस्थान का था, 1500 रुपये प्रति व्यक्ति लिया और लाकर कानपुर छोड़ दिया, कानपुर में ये ट्रक वाले मिल गए, पैसे नहीं लिए, हमको बैठा लिए, लेकर जाएंगे घर पर, हमको बिहार के बक्सर जाना है, ट्रक में बिहार के अलग-अलग जिलों के कई मजदूर सवार थे।


खाने-पीने से जुड़े सवाल पर एक मजदूर ने कहा, 'पांच दिन हो गया है, रास्ते में कोई खाना-पीना दे देता है तो खा लेते हैं, नहीं तो ऐसे ही भूखे जा रहे हैं. हम लोग जोधपुर में बर्तन बनाते थे, फैक्ट्री बंद कर दिया, राशन वाले राशन नहीं दे रहे थे, पैसे हमारे पास नहीं थे इसलिए घर के लिए निकल पड़े, घर पर खाने को तो मिल जाएगा, हम लोग एक साथ 5000 मजदूर निकले थे, सब रास्ते में अलग-अलग हो गए, मजदूरों ने बताया कि पैदल चलने की वजह से उनके पैरों में बेहद दर्द हो रहा है, वो लोग दर्द की दवाई खाते हुए आगे बढ़ रहे थे, मुंबई से लौटे एक मजदूर ने कहा, मैं 200 किलोमीटर पैदल चला हूं और अब तक 10 ट्रक बदल चुका हूं, मैं मुंबई में कपड़े की कंपनी में काम करता था, पैदल चलते हुए तबीयत बिगड़ गई थी ट्रक वालों ने मेरी मदद की।


रिपोर्ट @ आफाक अहमद मंसूरी