-लॉकडाउन के कारण हापुड़ के पास गांव में फंसे हिंदू श्रमिकों के लिए बड़ा सहारा बने मुस्लिम भाई..
-प्रवासी मजदूरों की ज़िन्दगी आइसक्रीम फैक्टरी के जरिये चलती थी लेकिन फैक्टरी बंद होने से ये मजदूर यूपी में फंसकर रह गए..
लखनऊ–उत्तर प्रदेश, 17 अप्रैल 2020, कोरोना वायरस की महामारी के कारण देशभर में जारी लॉकडाउन के बीच एक उम्मीदभरी खबर आई है, यूपी के हापुड़ जिले में एक मुस्लिम बहुल गांव के लोगों ने लॉकडाउन के बीच न केवल हिंदू श्रमिकों को रहने का ठिकाना दिया है बल्कि उनके खाने का इंतजाम भी इन मुस्लिमों द्वारा किया जा रहा है, दिल्ली से करीब 80 किमी दूर स्थित हापुड़ की आइसक्रीम फैक्टरी को लॉकडाउन के कारण बंद करना पड़ा, ऐसे में इस फैक्टरी में काम करने वाले 10 श्रमिकों के पास रोजीरोटी का कोई जरिया नहीं बचा, बिहार के पश्चिमी चंपारन जिले के इन मजदूरों ने पैदल अपने घर लौटने का फैसला किया, अभी ये हापुड़ कुछ किमी ही चले थे कि पुलिस ने इन्हें रोक लिया और लॉकडाउन का हवाला देते हुए लौटने को कहा, ऐसी हालत में इन लोगों को मुस्लिम बहुल गांव सरवानी में रुकने में मजबूर होना पड़ा, गांव के मुस्लिम इन श्रमिकों की मदद के लिए आगे आए, ये न केवल पिछले तीन सप्ताह से इन हिंदू श्रमिकों को रहने का ठिकाना उपलब्ध करा रहे हैं बल्कि उनके लिए भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं।
-आइसक्रीम फैक्टरी बंद होने से ये मजदूर यूपी में फंसकर रह गए हैं..
इन हिंदू श्रमिकों में से एक सुग्रीव अपने परिवार को लेकर चिंतित है, उसने बताया, पश्चिमी चंपारण जिले स्थित घर में फोन करने पर पत्नी ने बताया कि घर का राशन खत्म होने लगा है, परिवार में चार बच्चों और बूढ़ी मां पूरी तरह सुग्रीव पर ही निर्भर है, वही हर माह परिवार के लिए पैसे भेजता था लेकिन लॉकडाउन के चलते फैक्टरी बंद होने के कारण उसकी खुद की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है, सुग्रीव उन करीब एक दर्जन प्रवासी मजदूरों में से है जिसकी रोजीरोटी आइसक्रीम फैक्टरी के जरिये चलती थी लेकिन यह फैक्टरी बंद होने से यह उम्मीद खत्म हो गई है।
सरवानी गांव के शादाब चौधरी ने बताया कि जब से लॉकडाउन की अवधि आगे बढ़ी है, इन लोगों की परेशानी और बढ़ गई है, परिवार से बात करते हुए यह रोने लगते हैं, हम इन्हें समझाते हैं लेकिन हम इनकी स्थिति को समझ सकते हैं, यदि हम बाहर होते और हमारा परिवार गांव में ऐसी स्थिति का सामना कर रहा होता तो हमारी भी ऐसी ही स्थिति होती।
रिपोर्ट @ आफाक अहमद मंसूरी