मौत बनकर सामने थी भीड़, फिर 12 मुस्लिम परिवारों के लिए मसीहा बना हिन्दू समुदाय, पढ़ें इंसानियत की इनसाइड स्टोरी


 


मौत बनकर सामने थी भीड़, फिर 12 मुस्लिम परिवारों के लिए मसीहा बना हिन्दू समुदाय, पढ़ें इंसानियत की इनसाइड स्टोरी।


दिल्ली हिंसा में बाहर गाड़ियां फूंकी जा रही थीं। हर तरफ चीख-पुकार मची थी। इलाके में दुकानें लूटी जा रही थीं और खौफ से लोग घरों में दुबके बैठे थे। इसी बीच नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के घोंडा गांव स्थित भगतान मोहल्ले में उन्मादी भीड़ ने हिंसा फैलाने का प्रयास किया, लेकिन स्थानीय लोगों ने उनके मंसूबों को नाकाम कर दिया। भगतान मोहल्ला के लोगों ने सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम की। हिंदू समुदाय के लोगों ने 12 मुस्लिम परिवारों को हिंसा फैलाने वालों से सुरक्षित बचा के रखा। स्थानीय लोग दिन-रात उनकी सुरक्षा के लिए पहरा दे रहे हैं। इस मोहल्ले में तीन मुस्लिम परिवारों के अपने मकान हैं, बाकी सब परिवार किराये के मकान में रहते हैं।
इतनी हिंसा होने के बावजूद यहां हिंदू-मुस्लिम समुदाय के लोग एक-दूसरे को गले लगाते दिख रहे हैं। एक ही खाट पर बैठकर बचपन की यादों को ताजा किया जा रहा है। कुछ ऐसी तस्वीर इस मोहल्ले में देखने को मिल रही है।
हिंदू सेवा कर रहे: बुलंदशहर की रहने वाली अली फातिमा ने बताया कि वह इसी मोहल्ले में पिछले 20-22 वर्ष से रह रही हैं। जब बाहर चौक पर हिंसा हो रही थी तो गांव के लोगों ने हमारी हिफाजत की। इस कारण यहां हिंसा फैलाने वाले लोगों की आने की हिम्मत नहीं हुई। हम बेहद खुश हैं कि मोहल्ले के लोग हमारी सेवा में जुटे हैं। फातिमा के पति असगर अली का कहना था कि यहां पर हम पूरी तरह से सुरक्षित हैं। वह बोले कि हमारे मन में किसी प्रकार का कोई भय नहीं है।
आखिरी सांस इसी मोहल्ले में लूंगी: 35 वर्ष से इसी मोहल्ले में किराये पर रहने वाली बुजुर्ग हाजरा का कहना था कि यहां पर मैंने कभी असुरक्षित महसूस नहीं किया। यहां सभी धर्म और जाति के लोग परिवार की तरह रहते हैं। मैंने अपनी सारी बेटियों की शादी यहीं पर की है और आखिरी सांस भी इन्हीं लोगों के बीच में रहकर लेना चाहती हूं।
मुझे अपनों ने बचाया फिर लौटकर आऊंगा
वर्ष 1995 से दिल्ली में हूं। इस तरह की घटना पहली बार हुई है। मैं शिवहर चौक पर रहता हूं। मेरे मकान मालिक गुर्जर हैं। उन्होंने मुझसे कहा कि डरो नहीं हम तुम्हारे साथ हैं। हम हर तरह से मदद को तैयार हैं। यहां मुझे अपनों ने (हिंदुओं) बचाया। मुझे यहां डर नहीं लग रहा है, लेकिन अब काम कम है और रोजी रोटी का सवाल है, इसलिए घर जा रहा हूं। इश्याक अहमद ने ये बातें तब कीं, जब वह खूजरी चौक पर बिहार जाने वाली ट्रेन पकड़ने के लिए निकल रहे थे। वह परिवार के चार लोगों के साथ बिहार जा रहे थे। इश्याक कहते हैं कि मैं पेंटिंग का काम करता हूं। लोग मुझे प्यार से मुन्ना पेंटर कहते हैं।
कारीगरों को सुरक्षित घर भिजवाया
खजूरी चौक से करावल नगर तक रास्तों में एक दर्जन से अधिक जली हुईं गाड़ियां मानवता को शर्मसार करने वाली वारदातों की कहानियां बयां कर रही हैं। पास ही करावल नगर पश्चिमी चौक पर खड़े एएन तिवारी इस मंजर से दुखी नजर आए। उन्होंने बताया कि वर्ष 1984 के दंगे के बाद पहली बार इस तरह का मंजर देखा हूं। यह सब शायद उससे भी भयावह है। एमटीएनल से सेवानिवृत्त एनएन तिवारी ने बताया कि मेरी एक फैक्टरी है और वहां पर दो मुस्लिम कारीगर काम करते हैं। जब यहां माहौल बिगड़ा, तब मैंने अपने बेटे को साथ भेजकर मुस्लिम कारीगरों को उनके घर तक सुरक्षित भिजवाया।
बंटवारे के वक्त भी घर न छोड़ा था, अब सवाल ही नहीं
सीआईएसएफ के पूर्व सिपाही और राष्ट्रीय स्तर के पहलवान रह चुके 52 वर्षीय शाहिद ने बताया कि गांव के लोग घर के बाहर पहरा दे रहे थे। पड़ोसी शीशराम ने हमारी जान बचाई। कई लोग मुझे गांव छोड़ने के लिए भी कहते हैं, लेकिन 1947 में देश के बंटवारे के दौरान जब हमने गांव नहीं छोड़ा था तो अब कैसे इस जगह को छोड़ दूं।


परिवार का हिस्सा हैं स्थानीय
निवासी शीशराम व नवीन चौधरी का कहना था कि हिंसा करने वालों ने कई बार हमला करने का प्रयास किया, मगर वे जब भी यहां आते थे। हम उन्हें भगा देते थे। मुस्लिम भी हमारे परिवार का हिस्सा हैं। हम उन्हें आंच नहीं आने देंगे।


दीवार की तरह अड़ गए 
स्थानीय निवासी दिनेश शर्मा ने बताया कि भीड़ काफी उग्र थी। उन्होंने हमला करने की पूरी कोशिश की, लेकिन यहां के लोगों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। हम यहां घेरा बनाकर मुस्लिम समुदाय के लोगों की सुरक्षा के लिए खड़े हो गए थे।


25 लोगों को अपने घर में पनाह दी 
स्थानीय निवासी चिराग ने बताया कि उन्होंने दो दिन तक अपने घर में मुस्लिम समुदाय के 25 लोगों को शरण दी थी। घर काफी बड़ा होने की वजह से लोगों को रखने में कोई दिक्कत नहीं हुई। पूरा गांव यहां मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ खड़ा है। उन्हें सुरक्षित रखने के लिए हम अपनी जान की बाजी लगा देंगे।


बिहार के 15 मजदूरों की जान बचाई 
घोंडा गांव के ही रहने वाले चमन चौधरी ने बिहार के 15 मजदूरों को हिंसा के बीच सुरक्षित बचाया। इन लोगों को उन्होंने अपने घर में रखा है। उन्होंने मजदूरों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की है। चमन ने बताया कि भीड़ ने कई बार मजदूरों पर हमला करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें नाकाम कर दिया।


रिपोर्ट@त्रिलोकी नाथ