बाबा ओरीदास तपोस्थली प्रांगण में बसंत पंचमी यानी बसंत ऋतु के आगमन का उत्सव प्रारंभ।
रायबरेली: बसंत पंचमी को मां सरस्वती के प्राकट्योत्सव के रूप में जहां देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है तो वहीं रायबरेली जनपद के महराजगंज विकासखंड क्षेत्र की ग्राम सभा मोन स्थिति बाबा ओरी दास जी की तपोस्थली प्रांगण में सात दिवसीय भव्य मेले का आयोजन के रूप में ग्राम प्रधान की अध्यक्षता में बसंत पंचमी यानी बसंत ऋतु के आगमन का उत्सव मनाया जाता है। इस मेले (उत्सव) में दूरदराज से आने वाले दुकानदारों की हर सुख सुविधा का ख्याल मौजूदा ग्रामसभा के प्रधान रखते है। ओरी दास बाबा की तपोस्थली प्रांगण में 7 दिनों तक चलने वाले भव्य मेले में कॉस्मेटिक की दुकानों से लेकर काष्ठ कला की दुकाने मेलहारिओं के आकर्षक का केंद्र बनी रहती हैं तो वहीं दूसरी तरफ मानव दंगल से लेकर पक्षियों तक के दंगल यहां आने वाले हर दर्शनार्थी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
यहां की ऐसी मान्यता है कि, बाबा ओरीदास जी के दरबार में सच्चे मन से आने वाले श्रद्धालु की हर मनोकामना पूर्ण होती है। बाबा उसे हमेशा यश, वैभव धन-धान्य से परिपूर्ण रखते हैं।
आपको बता दें कि, बसंत पंचमी यानी बसंत के आगमन का उत्सव की पौराणिक मान्यता है कि, इसी दिन ब्रह्माजी ने समस्त सृष्टि को ध्वनि प्रदान करने के लिए अपनी पुत्री सरस्वतीजी को प्रकट किया था। इस कारण बसंत पंचमी को मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मान्यता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है और इस दिन बुद्धिप्रदाता मां सरस्वती के साथ धनदाता मां लक्ष्मीजी की भी पूजा का विधान है। इस व्रत के प्रभाव से आपके घर में मां लक्ष्मी का वास होता है और धन, वैभव, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। इस संबंध में पुराण वर्णित एक कथा का उल्लेख मिलता है।
जब लक्ष्मीजी का विष्णु जी से विवाह हुआ
प्राचीन काल में भृगु मुनि की पुत्री के रूप में जन्मी माता लक्ष्मी का विवाह विष्णुजी से हो गया। उसके बाद संपूर्ण देवताकुल में आनंन ही आनंद हो गया। सभी देवता संपन्न हो गए और समृद्धता से रहने लगे। देवताओं को आनंदमय रहता देख दैत्य क्रोध में रहने लगे। उन्होंने भी लक्ष्मीजी की प्राप्ति के लिए तपस्या करनी शुरू कर दी। वे भी सदाचारी और धार्मिक हो गए।
देवताओं को हो गया घमंड
लक्ष्मीजी के पास रहने से देवताओं को भी कुछ समय के पश्चात घमंड हो गया और उनके उत्तम आचार नष्ट होने लगे। अहंकार में आकर वे अनर्थ करने लगे। वहीं दूसरी ओर दैत्य लक्ष्मी प्राप्ति के लिए तपस्या कर रहे थे। देवताओं की शीलता नष्ट होती देख लक्ष्मीजी उनके पास से दैत्यों के पास चली गईं।
दैत्यों को भी होने लगा अहंकार
लक्ष्मीजी को प्राप्त करने के बाद दैत्यों को भी अहंकार होने लगा। वे खुद को सर्वश्रेष्ठ मानने लगे। वे संपूर्ण जगत हो अपने आधीन समझने लगे और अनेक प्रकार के अनुचित कृत्य करने लगे। दैत्यों को भी अहंकार में देखकर लक्ष्मीजी व्याकुल होकर उनका भी साथ छोड़कर क्षीरसागर में प्रविष्ठ हो गईं। ऐसा होने के बाद तीनों लोक श्रीविहीन होकर तेजरहित रहने लगे।
बृहस्पति से इंद्र ने पूछा उपाय
इंद्र देवता ने अपने गुरु बृहस्पति से श्रीप्राप्ति का उपाय पूछा। तो बृहस्पति ने इंद्र को माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को श्रीपंचमी बताकर व्रत रखने को कहा। उनको व्रत करते देख अन्य देवता, दानव, दैत्य, गंधर्व, राक्षस सभी व्रत करने लगे। इस व्रत के प्रभाव से सभी को फिर संपन्नता हासिल हो गई। लेकिन लक्ष्मीजी क्षीरसागर से वापस नहीं लौटी। तब देवता और दानव ने मिलकर उपाय निकाला कि, समुद्र को मथकर लक्ष्मीजी और अमृत को प्राप्त किया जाए।
त्रिलोकी नाथ
अमावां रायबरेली