धर्म कोई शाब्दिक ज्ञान नहीं अपितु परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति है


 


"धर्म कोई शाब्दिक ज्ञान नहीं अपितु परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति है".....
      "स्वामीशरणानंदजी"


जगतपुर (रायबरेली) 
पंडित जालिपा प्रसाद विद्यालय में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा चल रही, श्री हरिकथा के पांचवे अौर समापन दिवस भी प्रत्येक दिन की भांति अनेकों श्रद्धालुओं का जनसैलाब प्रभु की पावन महिमा को श्रवण करने हेतु पुनः उमड़ पड़ा। प्रभु की पावन कथा के प्रारंभ होने से पूर्व अनेकों ही मधुर भक्ति रचनाओं का गायन मंच पर उपस्थित स्वामी दीव्येस्वरा नंद, गुरु भाई मानवेंद्र जी, एवं गुरु बहनों द्वारा किया गया, जिसको सुनकर उपस्थित भक्त समुदाय ने अपने हृदय को प्रभु प्रेम से सिंचित किया और अपने हृदय को आलोकित किया। गुरुदेव श्री *आशुतोष महाराज जी* के शिष्य एवं कथा व्यास स्वामी श्री शिव शरणानंद जी ने ईश्वर की दिव्य अनंत लीलाओं का मार्मिक वर्णन करते हुए बताया कि प्रत्येक जीव के जीवन की सबसे बड़ी विडंबना है वह जिस ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है वह ईश्वर जहां पर सदैव विद्यमान है वहां ना खोज कर अन्यत्र खोजता है, इसीलिए उसे न कभी परमात्मा की अनुभूति प्राप्त होती है और ना ही परम आनंद शांति व सुकून की प्राप्ति होती है । जिसकी खोज उसे कई जन्मों से है। यदि हम आध्यात्मिक यात्रा का शुभारंभ करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम हमारे हृदय के अंदर ईश्वर दर्शन को प्राप्त करने की सच्ची जिज्ञासा वह तड़प का होना नितांत आवश्यक है , जिस प्रकार प्रभु के महान सच्चे व समर्पित भक्तों में थी। स्वामी जी ने आगे भारत के महान तरुण सन्यासी स्वामी विवेकानंद के ओजस्वी चरित्र पर प्रकाश डालते हुए बताया कि स्वामी विवेकानंद जी ने अपने संपूर्ण जीवन में ईश्वर के दर्शन को ही सर्वाधिक प्राथमिकता प्रदान की, इसीलिए उनको अनेकों गुरुओं के पास ईश्वर दर्शन की तीव्र अभिलाषा लेकर जाना पड़ा। उनकी जीवन गाथा बताती है ईश्वर दर्शन को प्राप्त करने की इस यात्रा में वे लगभग 50 गुरुओं  के पास गए परंतु ईश्वर दर्शन की उनकी अभिलाषा को कोई भी गुरु पूर्ण न कर सके। नरेंद्र के मन में ईश्वर दर्शन की तड़प इतनी तीव्र थी, की ईश्वर की कृपा से उनके जीवन में एक ऐसे पूर्ण गुरु अर्थात" सद्गुरु " की शरणागति की प्राप्ति होती है, जिनसे उन तीन प्रश्नों को वह करते हैं जो सभी संतो से किया करते थे। उनका पहला प्रश्न था क्या ईश्वर है, दूसरा प्रश्न था क्या आपने ईश्वर को देखा है एवं तीसरा प्रश्न था यदि आपने ईश्वर को देखा है तो इसका क्या प्रमाण है। समय के पूर्ण गुरु ठाकुर रामकृष्ण परमहंस जी कहते हैं हां ईश्वर है और मैंने ईश्वर को देखा है। पुनः नरेंद्र कहते हैं आपने ईश्वर को देखा है इसका क्या प्रमाण है फिर ठाकुर कहते हैं, नरेंद्र मैं तुझे ईश्वर का दर्शन करा सकता हूं इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है।" प्रत्यक्षम्म किम् प्रमाणम।" प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है। नरेंद्र के जीवन में ठाकुर जैसे प्रथम संत का आगमन हुआ था, जिन्होंने इतने स्पष्ट शब्दों के अंदर ईश्वर दर्शन करने का दावा किया और अपनी कृपा का हाथ नरेंद्र के मस्तक पर रखकर दिव्य दृष्टि खोलकर अंतः करण में ईश्वर के अलौकिक प्रकाश को प्रकट कर उन्हें नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बना देते हैं। और संपूर्ण विश्व के अंदर आर्यावर्त भारत की गौरवशाली संस्कृति की ध्वज पताका संपूर्ण ऊर्जा के साथ फहराते है। स्वामी विवेकानंद जी का दिव्य उद्घोष है----


 " *उठो जागो और तब तक चलो जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।"* 


यह ऐसा दिव्य उद्घोष है जो आज भी संपूर्ण विश्व के अखंड युवा समाज को जागृत करने की संपूर्ण क्षमता रखता है, वर्तमान समय में भी स्वामी विवेकानंद जी संपूर्ण विश्व के युवाओं के लिए आदर्श व्यक्तित्व के समान हैं। विचारणीय बात तो यह है स्वामी विवेकानंद जी ने इतने कम समय के अंदर वह गौरवशाली कार्य कर दिखाया जो इस धरा पर हजारों वर्षों तक जीवन व्यतीत करने वाले संत महापुरुष नहीं कर पाए। अन्य स्थान पर स्वामी जी अपने गुरुदेव के लिए उद्बोधन करते हैं---
"मैं उस प्रभु का सेवक हूं जिसे अज्ञानी लोग मनुष्य कहा करते हैं।"
कहने का आशय गुरु के सरणागति की महिमा को वही जिज्ञासु जान सकता है, जिसके जीवन का लक्ष्य मात्र ईश्वर की प्राप्ति करना बन चुका हो। कथा को आगे बढ़ाते हुए स्वामी जी ने बताया कि यदि आज कोई भी युवा अपने हृदय में ईश्वर दर्शन की सच्ची जिज्ञासा को लेकर के नरेंद्र बन भी जाए तो क्या ऐसे ठाकुर हैं जो उसका दिव्य चक्षु खोलकर अंतर्गत ने ही ईश्वर का दर्शन करा करके सत्य के मार्ग पर अग्रसर कर सकते हैं। हां हर समय में ऐसे पूर्ण गुरु की गरिमामय उपस्थिति इस धरा पर होती है जो प्रत्येक मानव के अंतर ह्रदय में ईश्वरी प्रकाश को प्रकट करने का सामर्थ्य रखते हैं शास्त्र ग्रंथ ऐसे ही गुरु की प्राप्ति की ओर हमें अग्रसर करते हैं वर्तमान समय में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक परम पूज्य गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी समाज के ईश्वर दर्शन की सच्ची जिज्ञासा  रखने वाले समस्त मानव समाज का आवाहन कर रहे हैं कि वह सर्वप्रथम अपने हृदय के अंदर सच्ची जिज्ञासा को जन्म दे तत्पश्चात आगे बढ़े ईश्वर उनका मार्ग स्वयं सुलभ कराएंगे । इस युक्ति को चरितार्थ करते हुए कथा के समापन दिवस गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की असीम कृपा से अनेकों जिज्ञासु को "ब्रह्म ज्ञान" की दीक्षा प्रदान की गई और उन सभी ने नरेंद्र की तरह ध्रुव प्रहलाद नचिकेता की तरह अपने अंतर्गत में ईश्वर के प्रकाश की दिव्य अनुभूतियां अनेकों अलौकिक नजारों का दर्शन प्राप्त किया और अपने जीवन को ईश्वर के सच्चे मार्ग पर अग्रसर किया कार्यक्रम का समापन भव्य भंडारी द्वारा किया गया जिस को पूर्ण करने के लिए जगतपुर क्षेत्र के अनेकों ही भक्त व्यापारी बंधुओं ने किसानों युवाओं एवं श्रद्धालुओं ने पूर्ण समर्पण भाव से अपने सहयोग को भी प्रदान किया। कथा के समापन होने से पूर्व संस्थान के संयोजक स्वामी श्री विश्वनाथ आनंद जी ने प्रभु की इस पावन कथा को संपूर्ण करने में सहयोग देने वाले समस्त श्रद्धालुओं का कोटि-कोटि धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहते हैं कि संस्थान समाज के समस्त वर्गों के उत्थान के लिए कार्य कर रहा है चाहे वह कारागार के अंदर बंद कैदी हो, नेत्रहीन भाई बहन हो या नारी शक्ति हो या नशा की दलदल में फंसा हुआ युवा समाज हो, सभी के लिए दिव्य ज्योति जागृति संस्थान पूर्ण निष्काम भाव से उन सभी के अंतः करण में ब्रह्म ज्ञान की दीक्षा को प्रदान कर ईश्वर के प्रकाश को प्रकट कर उनके संपूर्ण जीवन को आलोकित करता हुआ आगे बढ़ रहा है। कार्यक्रम का शुभारंभ भारतीय परंपरा दीप प्रज्वलन का निर्वहन करते हुए उपस्थित मुख्य मुख्य अतिथि अमरेश सिंह, नीरज मौर्य, राजबहादुर सिंह, आलोक सिंह सत्य साईं इंडेन गैस एजेंसी, पारी, सुरेश नारायण पांडे ,प्रबंधक, रमेश सिंह ,कुमार दिवाकर सिंह , लकी सिंह,भूपेंद्र सिंह, नीरज सिंह, पुष्पेंद्र सिंह, दिनेश मौर्य एवं  ओमजी त्रिपाठी सहित भक्तों की गरिमामय उपस्थिति रही।


 


दीपक कुमार जगत पुर सवांददाता