गर्भवती महिलाओं को प्रसव खर्च के लिए 30 फीसदी परिवारों को बेचनी पड़ी संपत्ति


विदेश में यह बताने के बाद कि भारत में सब अच्छा है और सब बेहतर है, एक सर्वे ऐसा सामने आया है जो बताता है कि यहां सब ठीक नहीं है। देश के छह राज्यों के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली गर्भवती और हाल ही में मां बनी माताओं के बीच हुए एक सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले हैं। इस सर्वे के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं की स्थिति निराश करने वाली है। 
यह सर्वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों और आंगनबाड़ी में जून 2016 में कराया गया था। इसके अनुसार 30 फीसदी परिवारों को प्रसव का खर्च उठाने के लिए अपनी संपत्ति बेचनी पड़ी, वहीं 63 फीसदी महिलाएं डिलिवरी के दिन तक खेतों या घरों में काम करती रहीं। कई महिलाओं का डिलिवरी के दिन तक वजन 40 किलो से भी कम था।


सबसे ज्यादा निराशाजनक तस्वीर उत्तर प्रदेश की है। यहां गर्भावस्था के दौरान की जरूरतों पर बेहद कम ध्यान दिया गया। यूपी में 48 फीसदी गर्भवतियों को यह जानकारी भी नहीं थी कि इस दौरान उनका वजन बढ़ा या घटा। बच्चे को जन्म दे चुकीं 39 फीसदी माताओं को अपने वजन घटने या बढ़ने की जानकारी नहीं थी। वहीं, केवल 12 फीसदी महिलाओं ने माना कि उन्हें पौष्टिक भोजन मिल रहा है। 


सामान्यत: गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का वजन बढ़ता है। लेकिन अगर खानपान में लापरवाही होने पर इसमें कमी भी आ जाती है। चिकित्सक बताते हैं कि गर्भावस्था के दौरान आम तौर पर महिला का वजन 13 से 18 किलोग्राम तक बढ़ना चाहिए। लेकिन, सर्वे में शामिल महिलाओं की औसत वजन वृद्धि केवल सात किलो ही थी। वहीं उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा केवल चार किलो है। 


बता दें कि 31 दिसंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एलान किया था कि पूरे देश में गर्भवती महिलाओं को छह हजार रुपये का मातृत्व लाभ प्रदान किया जाएगा। लेकिन, हकीकत देखें तो इसका लाभ कुछ को ही मिल पा रहा है। प्रधानमंत्री के एलान के बाद 2018-18 बजट में मातृत्व लाभ योजना के लिए 2700 करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया गया था। 


हालांकि, अगर जरूरत को देखें तो यह राशि काफी कम है और आंकड़े देखें तो हर महिला को थह हजार रुपये देने के लिए सालाना जरूरत होगी लगभग 15 हजार करोड़ रुपये की। वहीं, एक आरटीआई का जवाब बताया है कि साल 2018-19 में इस योजना की पात्र महिलाओं में आधी आबादी को ही राशि मिली, वह भी थोड़ी-थोड़ी। वहीं, पहले बच्चे के जीवित होने की शर्त के चलते 55 फीसदी महिलाएं अपात्र हो गईं।