आखिर किसके इशारों पर देश के शिक्षण संस्थानों को कट्टरवादी विचारधारा की आग में झौंका जा रहा है?
क्या JNU प्रकरण के बाद अब BHU और AMU को राष्ट्रवाद, जातिवाद तथा महापुरुषों के नाम पर गरमाने की साजिश रची जा रही है?
अगर मुसलमान शिक्षक संस्कृति पढ़ाएगा तो क्या धर्म भ्रष्ट हो जाएगा?
क्या मुस्लिम शिक्षक संस्कृति नहीं पढ़ा सकता?
देश में वीर सावरकर और स्वामी विवेकानंद जैसे मुद्दों पर माहौल क्यूँ गरमाया हुआ है?
आखिर किसके इशारों पर शिक्षा के केंद्र में असामाजिक गतिविधियों एवं कट्टरवादी विचारधारा की बीमारी से ग्रस्त लोगों को संस्थान का माहौल खराब करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है?
आखिरकार क्यूँ और किसके दिशानिर्देशों पर शिक्षा के मंदिर में कट्टरपंथी विचारधारों को जन्म दिया जा रहा है?
हमें शर्म आनी चाहिए खुद पर और इस देश के लोकतंत्र, संविधान, कानून व्यवस्था और न्याय प्रणाली पर जिसने एक योग्य और शिक्षित व्यक्ति को बनारस छोड़ने पर मजबूर कर दिया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में एक योग्य फिरोज खान नाम के शिक्षक का विरोध सिर्फ इसीलिए किया गया क्योंकि वह मुसलमान था।
अगर धर्म के ठेकेदारों को देश में मुसलमानों से इतनी परेशानी है तो वो अपनी पार्टी से शाहनवाज हुसैन, मुख्तार अब्बास नकवी जैसे कई मुस्लिम नेताओ को निकालकर उन्हें बाहर क्यूँ नहीं फेंक देते? क्यूँ अपनी राजनीतिक साख को बचाए रखने के लिए समाज को नफरत की आग में झोंक रहे हो? ऐसी क्या मजबूरी है कि सत्ता के साढ़े पांच साल बीत जाने के बाद भी उच्च व सस्ती शिक्षा पर बात नहीं होती? जो राजनीतिक दल समाज में हिन्दू मुस्लिम और जातिवाद की खाई पैदा करके जहर घोल रहे वो खुद अपनी ही पार्टी से मुस्लिम नेताओं को क्यूँ नहीं निकाल देते?
स्वार्थ और जातिवाद की सोच से ग्रस्त नेता व राजनेताओं अपने ही देश की जनता को आपस में लड़कर मरने मारने के लिए छोड़ दिया है।
नितिन शुक्ला आगरा सवांददाता