इस महापुरुष ने कुछ यूं बुलंद किए अपनी जिंदगानी के पल


 


इस महापुरुष ने कुछ यूं बुलंद किए अपनी जिंदगानी के पल


 


उन्नाव के मालवीय कमला शंकर अवस्थी जी 


डेस्क


  अधिक जानकारी स्रोत आदरणीय गौरव अवस्थी जी वरिष्ठ पत्रकार


उन्नाव जनपद के मालवीय कहे जाने वाले शिक्षा सेवी आदरणीय कमला शंकर अवस्थी ने 87 वर्ष की अवस्था में अपने रामलीला मैदान उन्नाव स्थित आवास पर रात 1:30 बजे सीताराम के भजनों के बीच अंतिम सांस ली. वह पिछले 4 माह से अस्वस्थ चल रहे थे.


श्री अवस्थी का जन्म 1931 में पंडित गोकरन नाथ अवस्थी एवं श्रीमती रामदुलारी अवस्थी के आंगन में हुआ था. आपके पिता बीघापुर ब्लाक के सथनी बाला खेड़ा गांव के निवासी थे. रोजी रोटी के सिलसिले में वह कोलकाता चले गए वही उनका कम उम्र में निधन हो गया उस वक्त कमला शंकर अवस्थी सिर्फ 3 वर्ष के थे. मां रामदुलारी अवस्थी उन्हें उन्नाव लेकर चली आई यही उनका लालन-पालन हुआ.


राजनीति एवं सहकारिता आंदोलन से जुड़े श्री अवस्थी ने शिक्षा के क्षेत्र में 90 के दशक में कदम रखा और उन्नाव जनपद के मूल्य निवासी विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के उपकुलपति रहे डॉ शिवमंगल सिंह सुमन की सरपरस्ती में जनपद की माटी के सपूत महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के नाम पर निराला शिक्षा निधि का गठन किया.


जन सहयोग से वर्ष 1993 में बीघापुर ओसियां में महाप्राण निराला महाविद्यालय की स्थापना की वर्ष 2004 में महाप्राण निराला की धर्मपत्नी मनोहरा देवी के नाम पर मनोहरा स्मृति महिला महाविद्यालय की स्थापना ग्राम गौरी बीघापुर में की. उस वक्त बीघापुर इलाके के युवा और युवतियां उच्च शिक्षा से वंचित रहते थे क्योंकि उन्नाव से लेकर लालगंज (रायबरेली) के 70 किलोमीटर की दूरी में कोई भी उच्च शिक्षा का केंद्र नहीं था उस क्षेत्र के युवाओं को उच्च शिक्षा की सुविधा दिलाने के लिए ही श्री अवस्थी ने डिग्री कॉलेज स्थापित किया. दोनों ही महाविद्यालयों से क्षेत्र के हजारों युवा शिक्षित होकर जनपद और प्रदेश का मान बढ़ा रहे हैं. 


शुक्रवार की तड़के 1:35 बजे उन्होंने राम नाम के भजनों के बीच अंतिम सांस ली. परिवार के सभी सदस्यों ने उन्हें आखरी समय तक श्री राम नाम का पान कराया. वह अपने पीछे दो बेटे और एक बेटी का भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं


जिला सहकारी बैंक के दो बार अध्यक्ष चुने गए


श्री अवस्थी जिला सहकारी बैंक के दो बार अध्यक्ष रहे. पहली बार उन्होंने 1972 में जीत हासिल की थी कार्यकाल पूरा होने के पहले ही साजिश के तहत उनके बोर्ड को भंग कर दिया गया . दोबारा उन्होंने पुनः 1978 में जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और तत्कालीन सांसद वार्ड 22 विधायकों के विरोध के बावजूद चुनाव जीता . जिला सहकारी बैंक में अपने अध्यक्ष कार्यकाल में उन्होंने 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार प्रदान किया. बीघापुर मियागंज हसनगंज पुरवा आदि समेत दर्जनों बैंक की शाखाएं खोली. भ्रष्टाचार को रोकने की खातिर श्री अवस्थी ने प्रदेश में सबसे पहले जिला सहकारी बैंक उन्नाव में चेक प्रणाली लागू की थी.


बार एसोसिएशन के 5 बार अध्यक्ष चुने गए


समाजसेवी कमला शंकर अवस्थी अधिवक्ता राजनीति में भी सक्रिय उन्नाव जनपद के अधिवक्ताओं के असीम प्यार स्नेह और सहयोग की बदौलत ही उन्नाव बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पद को 5 बार सुशोभित किया. जनपद के अधिवक्ता श्री अवस्थी पर अटूट विश्वास करते थे और उनके नेतृत्व में अधिवक्ताओं ने उन्नाव से लेकर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक में सफल आंदोलन किए.


चुनावी राजनीति में भी सक्रिय रहे


शिक्षाविद एवं समाजसेवी कमला शंकर अवस्थी चुनावी राजनीति में भी खूब सक्रिय रहे. श्री अवस्थी ने वर्ष 1991 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर भगवंत नगर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव भी लड़ा था हालांकि दलीय राजनीति में वह बहुत सफल नहीं रहे और उसी के बाद उन्होंने सामाजिक सेवा के लिए शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखा. इसके पहले अर्श कांग्रेस के टिकट पर सदर विधानसभा क्षेत्र से भी चुनाव में भाग्य आजमाया था.


पत्रकारिता में भी मानदंड स्थापित किए


समाज सेवी कमला शंकर अवस्थी सजग और सतर्क नागरिक तो थे ही वह जागरूक पत्रकार भी थे आम लोगों किसानों दलितों पिछड़ों की आवाज को शासन प्रशासन तक पहुंचाने के लिए उन्होंने 25 जून 1977 को एक साप्ताहिक समाचार पत्र "अवध समाचार" का प्रकाशन भी किया. समाचार पत्र के माध्यम से उन्होंने गरीबों मजलूमों की को प्रमुखता से शासन प्रशासन के समक्ष प्रस्तुत किया. करीब 5 साल तक लगातार प्रकाशन के बाद उनकी अन्य क्षेत्रों में व्यस्तता के चलते यह समाचार पत्र बंद हो गया.


RSS के प्रतिबंध तोड़ो आंदोलन में जेल भी गए


कमला शंकर अवस्थी तब नाबालिक थे. वह तब मात्र 17 वर्ष के रहे होंगे. यह बात की है जब महात्मा गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर तब की सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था. संघ ने प्रतिबंध तोड़ो आंदोलन का आगाज किया था. संघ की शाखा से 1948 में आठ अन्य साथियों के साथ श्री अवस्थी को गिरफ्तार किया गया था. गिरफ्तार होने वालों में इस जनपद के वरिष्ठ स्वयंसेवक आदरणीय श्रीराम शंकर त्रिपाठी भी थे. कई लोग माफी मांगने पर जेल से छूट गए थे लेकिन तमाम दबावों के बावजूद श्री अवस्थी ने माफी नहीं मांगी और 2 महीने जेल में बंद रहे. 2 महीने बाद तत्कालीन सरकार ने उन्हें खुद रिहा कर दिया था.


इमरजेंसी में दी थी गिरफ्तारी


श्री अवस्थी 1977 में इमरजेंसी के दौरान आम लोगों के हक की लड़ाई लड़ते हुए गिरफ्तार किए गए थे. उस वक्त भी उन्होंने जालिम सरकार के आगे झुकना स्वीकार नहीं किया और अपनी लड़ाई को जारी रखा. जेल में उन्हें काफी यातनाएं दी गई. खाने में कीड़े वाली दाल परोसी जाती थी इसके अतिरिक्त जेल में और भी यातनाएं दी गई लेकिन वह ना झुके ना टूटे.


1952 में आयोजित किया पहला कवि सम्मेलन


श्री अवस्थी ने साहित्यिक उर्वरा उन्नाव की धरती पर साहित्य का माहौल भी पूरे जीवन बनाया. साहित्य प्रेमी लोगों के साथ मिलकर उन्होंने मां भारती की सेवा के लिए भारती परिषद उन्नाव का गठन भी किया. परिषद के बैनर तले 1952 में उन्होंने पहला कवि सम्मेलन शहर के बीचोबीच बड़ा चौराहा पर स्थित अटल बिहारी इंटर कॉलेज में आयोजित किया. तब महिला श्रोता के रूप में अकेली उनकी मां श्रीमती रामदुलारी अवस्थी उपस्थित रही थी. कवि सम्मेलन की यह परंपरा लगातार 60


 वर्षों तक चलती रही. देश के तमाम ख्यातिलब्ध कवियो और शायरों ने भारती परिषद के मंच को सुशोभित किया. इनमें बलवीर सिंह रंग चंद्रभूषण त्रिवेदी रमई काका डॉक्टर शिवमंगल सिंह सुमन पद्मश्री बेकल उत्साही पद्मश्री गोपालदास नीरज कवि सांसद उदय प्रताप सिंह कवि सांसद बालकवि बैरागी सरिता शर्मा सोम ठाकुर भारत भूषण आदि प्रमुख है.


भारतीय परिषद के बैनर तले हुए हिंदी सम्मेलनों में महीयसी महादेवी वर्मा हिंदी के प्रथम विदेशी विद्वान फादर कामिल बुल्के, आचार्य विष्णुकांत शास्त्री आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जैसे स्वनामधन्य साहित्यकार उन्नाव पधारे थे. 


गढ़ाकोला- डलमऊ तक की पदयात्रा


महाप्राण निराला की स्मृतियों को जीवंत बनाने के लिए उन्होंने उन्नाव से गढ़ाकोला और डलमऊ तक की पदयात्रा की. इसमें सैकड़ों लोग खुशी-खुशी शामिल हुए थे और जगह-जगह इन पदयात्रा का स्वागत भी हुआ था.


गढ़ाकोला महाप्राण निराला का पैतृक ग्राम है और डलमऊ में उनकी ससुराल थी. दोनों ही जगह रहकर निराला जी ने कालजई रचनाएं रची थी.


धार्मिक क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा


समाज सेवी एवं शिक्षाविद श्री अवस्थी की गहरी आस्था धर्म और अध्यात्म हुई थी गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरित मानस उन्हें पूरी तरह से कंठस्थ थी. गोस्वामी तुलसीदास कि वह भक्त थे. उन्होंने वर्ष 2003 में राष्ट्रसंत और श्रेष्ठ कथावाचक मोरारी बापू की कथा भी गौरी बीघापुर में संपन्न कराई थी. इसमें हजारों-हजार लोग आस-पड़ोस के जनपदों तक से जुटे थे. मुरारी बापू की व्यासपीठ की जगह पर श्री अवस्थी ने भव्य पवनतनय मंदिर निर्मित कराया और मुरारी बापू हनुमान जी के जिस ध्यान मुद्रा के विग्रह की पूजा करते हैं उसी विग्रह की 5 फुट ऊंची पवनतनय की मूर्ति मंदिर में 11 वर्ष पहले धूमधाम से स्थापित कराई।


 


मनीष कुमार श्रीवास्तव रायबरेली सवांददाता