रायबरेली : राजा डालदेव के शोक में 600 साल बाद भी 50 गांवों में नहीं मनाई जाती होली


 


 राजा डालदेव के शोक में 600 साल बाद भी 50 गांवों में नहीं मनाई जाती होली।


रायबरेली। होली हर्ष और उल्लास का त्यौहार है। इस दिन सभी खुशी में जश्न मनाते हैं और एक दूसरे से गले मिलते हैं। लेकिन रायबरेली के करीब 50 गांवों में ऐसा नहीं है। इन गांवों के लिए होली का दिन शोक का होता है और लोग गम में डूबे रहते हैं। इसके पीछे करीब 600 साल पुरानी ऐतिहासिक कहानी है, जिसके कारण आज भी लोग परम्परागत रूप से होली के दिन खुशी के बजाए शोक मनाते हैं।
पंद्रहवीं शताब्दी में भारशिवों का साम्राज्य रायबरेली और प्रतापगढ़ जिलों में व्यापक रूप से फैल गया था। राजा डालदेव ने भारशिवों के राजा बनकर डलमऊ को अपनी राजधानी बनाई और इस क्षेत्र में अपनी सत्ता स्थापित की। जौनपुर के शर्की वंश के शासक इब्राहिम शाह शर्की को राजभरों की सत्ता अखर रही थी।
वह किसी भी कीमत में राजभरों को हटाना चाहता था। इतिहासकारों के मुताबिक, इस समय तक राजभर बेहद शक्तिशाली हो चुके थे और रायबरेली में ही करीब 25 किलों का निर्माण उन्होंने कर लिया था। ऐसे में राजा डालदेव को हराना शर्की के लिए इतना आसान नहीं था। इसलिए वह सीधी लड़ाई न लड़कर मौके की तलाश करने लगा।
होली के दिन की गई राजा की हत्या
राजा डालदेव होली बहुत धूमधाम से मनाते थे। इस दिन उनके सैनिक भी अपने हथियारों को रखकर जश्न में डूबे रहते थे। इसी का फायदा इब्राहिम शाह शर्की ने उठाया और होली के दिन ही करीब 1430 ईं में आक्रमण करने का निश्चय किया। गजेटियर के पेज संख्या 25 में इस आक्रमण का विस्तृत उल्लेख मिलता है। होली के दिन शर्की की सेनाओं ने चारों तरफ से घेराबंदी कर ली और उसके सैनिक धोखे से राजा के उत्सव में शामिल हो गए।शर्की के सैनिकों ने राजा डालदेव की धोखे से हत्या कर दी और भीषण रक्तपात किया। लोगों की हत्याएं की गई और पूरे डलमऊ को तहस नहस कर दिया गया।
राजा के शोक में 600 साल बाद भी नहीं मनाई जाती होली
राजा डाल देव की मौत के करीब 600 साल हो गए है लेकिन इस क्षेत्र के लोग आज भी राजा की याद में होली नहीं मनाते हैं। डलमऊ क्षेत्र के करीब 28 गांवों सहित कुरौली दमा, जलालपुरधाई, चरुहार, कल्याणपुर बेटी सहित कई गांवों में आज भी शोक की परंपरा है। इन गांवों के लोग तीन दिन का शोक मनाते है। अन्य स्थानों से विपरीत यहां के लोग तीन दिन कोई भी उत्सव नहीं मनाते है। यहां का माहौल पूरी तरह से अलग रहता है।तीन दिन के शोक के बाद ही होली का पर्व यहां के लोग मनाते हैं। देश में जहां लोग इस दिन होली के जश्न में डूबे रहते है। वहीं 600 साल बाद आज भी इतिहास और परम्परा से प्रेरित होकर होली न मनाना सभी को आश्चर्यचकित करता है।



रिपोर्ट@त्रिलोकी नाथ