भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर की नई पार्टी से किसके पैरों तले खिसकेगी ज़मीन, क्या बदलेंगे सियासी समीकरण ?


 


भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर की नई पार्टी से किसके पैरों तले खिसकेगी ज़मीन, क्या बदलेंगे सियासी समीकरण ?


भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर 15 मार्च को अपनी राजनीतिक पार्टी बना सकते हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में उन्होंने रविवार को इस बात का एलान किया. इसके बाद राजनीतिक कयासों का बाजार गर्म हो गया है. यूपी में विधानसभा का चुनाव 2022 में होनेवाला है. इससे दो साल पहले चंद्रशेखर के सक्रिय राजनीति में आने की बात ने प्रदेश की राजनीति के दिग्गजों का ध्यान खींचा है.
ओम प्रकाश राजभर की पार्टी से मिलेगी मदद
राजनीतिक पार्टी बनाने की योजना जाहिर होने के बाद लखनऊ के वीआईपी गेस्ट हाउस में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने चंद्रशेखर से मुलाकात की।


बताया जाता है कि इस दौरान यूपी विधानसभा चुनाव के लिए दोनों के एक साथ आने पर चर्चा भी हुई. राजभर अपनी पार्टी के साथ लंबे समय तक बीजेपी गठबंधन में शामिल थे. बाद में राजनीतिक उपेक्षा का आरोप लगाकर अलग हो गए.
SBSP की ओर से भीम आर्मी के आठ दलों के भागीदारी संकल्प मोर्चा में शामिल होने पर राजी होने का दावा किया. पार्टी महासचिव अरविंद राजभर ने बताया कि बैठक में तय हुआ कि भीम आर्मी राजभर की अगुवाई वाले भागीदारी संकल्प मोर्चा का हिस्सा बनेगी. चंद्रशेखर मोर्चा का हिस्सा बनेंगे और इसकी औपचारिक घोषणा अगले कुछ दिनों में कर दी जाएगी. उन्होंने बताया कि यह बैठक करीब आधा घंटा चली.
पहला निशाना होगा बीएसपी का वोट बैंक
चंद्रशेखर ने बताया कि 15 मार्च को उनके साथ यूपी के बड़े चेहरे दिखेंगे. यूपी की बड़ी पार्टियों में एक बहुजन समाज पार्टी और बहुजन वालंटियर फोर्स जैसे संगठनों के कुछ नेताओं को अपने साथ आने की बात बताई. बीएसपी से निकाले जा चुके एक पूर्व एमएलसी सुनील चित्तौड़ समेत कई दूसरे नेताओं ने भी चंद्रशेखर से मुलाकात की. इसके बाद साफ हो गया कि चंद्रशेखर का पहला निशाना बीएसपी सुप्रीमो मायावती के वोट बैंक पर ही होगा.
यूपी में सियासी सफर की शुरुआत करने की कोशिश में सबसे पहले चंद्रशेखर ने बीएसपी के असंतुष्ट नेताओं से बातचीत आगे बढ़ाया है. लखनऊ में घंटाघर पर नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में चल रहे प्रदर्शन में हिस्सा लेने पहले नजरबंद कर दिए जाने के बाद भी चंद्रशेखर ने अपने बयान में मायावती को याद किया और कहा था कि वह बड़ी हैं और उन्होंने ही मूवमेंट को संभालने का इशारा किया है.
मायावती को साधने की करते रहे हैं कोशिश
चंद्रशेखर अपनी बुआ की तरह बताकर मायावती से अपना खून का रिश्ता बताते रहे हैं, जबकि मायावती पहले कई बार कह चुकी हैं कि वह चंद्रशेखर को राजनीतिक अवसरवादी और अपना विरोधी मानती हैं. उन्होंने तो भीम आर्मी और चंद्रशेखर को बीजेपी की टीम बी करार दिया हुआ है.
यूपी में कभी गठबंधन और कभी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में रही मायावती और उनकी पार्टी को लोकसभा चुनाव 2019 में थोड़ी सी राहत नसीब हुई. हालांकि तब उनकी पार्टी बीएसपी का समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन था. इसके बाद दोनों दलों की राहें जुदा हो गईं. इसलिए चंद्रशेखर के राजनीति में आने से सबसे ज्यादा बीएसपी को नुकसान के कयास ही लगाए जा रहे हैं।
CAA-NRC-NPR विरोध से मुसलमानों पर नजर
नजरबंद किए जाने के बाद अपना दुखड़ा बताते हुए चंद्रशेखर ने रविवार को कहा था, 'मैं यहां अपने संगठन को मजबूत करने और उनकी परेशानियों को दूर करने आया हूं. इसके साथ ही यूपी में CAA, NPR और NRC के आंदोलन को कैसे करना है इसे लेकर रणनीति बनाने आया हूं.' वहीं पुलिस अधिकारी ने कहा कि उन्हें नजरबंद नहीं किया गया है बल्कि सिर्फ घंटाघर प्रद्रशन में जाने से रोका गया है. यह कदम शांति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए उठाया गया है.
इसके बाद साफ हो गया कि इन मुद्दों के साथ चंद्रशेखर यूपी में बड़ी संख्या में मुसलमान वोटों को एकमुश्त अपने पाले में करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. 'जय मीम-जय भीम' नारे के साथ इसकी कोशिश पहले AIMIM चीफ असद्दुदीन ओवैसी पहले यूपी में कर चुके हैं. हालांकि इसमें वह शर्मनाक तरीके से नाकाम हो गए थे. इसके बावजूद यूपी विधानसभा लड़ने का एलान कर चुके चंद्रशेखर ने CAA, NPR और NRC विरोधी प्रदर्शन में सबसे ज्यादा ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय से लोगों के साथ आने की बात कही है.
दिल्ली हिंसा पर बोलकर पश्चिमी यूपी पर नजर
इसके अलावा दिल्ली में बीते दिनों हुई हिंसा पर रावण ने कहा था कि यह प्रायोजित है और बहुत ही दुखद है. उन्होंने कहा, 'दिल्ली में तीन दिन तक हिंसा जारी रही और गृह मंत्री वहां थे. उनके पास इतनी ताकत है कि वह एक घंटे में इसे रोक सकते है लेकिन हिंसा को रोका नहीं गया.' इसके साथ ही उन्होंने दिल्ली से लगे पश्चिमी यूपी के लोगों को खुद से जोड़ने के संदेश दिए. चंद्रशेखर खुद भी उसी इलाके से आते हैं. वहीं दिल्ली हिंसा को लेकर आरोप लगाए जा रहे हैं कि उसमें यूपी से जाकर कुछ असमाजिक तत्वों ने वहां का माहौल बिगाड़ा था.
पश्चिमी यूपी में दलित वोटर्स की बड़ी भागीदारी है. एक समय यह बीएसपी का गढ़ रह चुका है. साथ ही इलाके में कई सीटों पर ओबीसी खासकर जाट समुदाय की बढ़त है. जाटों के वोटों पर चौधरी अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल का दावा है. बीते चुनाव में उनका भी सपा-बसपा के साथ गठबंधन था. पश्चिमी यूपी के सहारनपुर और शब्बीरपुर हिंसा में जेल भेजे जाने के बाद ही चंद्रशेखर सुर्खियों में आए थे. ऐसे में वह पश्चिमी यूपी पर फोकस करेंगे क्योंकि सहारनपुर के अलावा मुरादाबाद, रामपुर और अमरोहा भी मुस्लिम बहुल जिले हैं।
चंद्रशेखर की राजनीतिक ताकत
पश्चिमी यूपी के सहारनपुर में जन्मे चंद्रशेखर ने कानून की पढ़ाई की है. साल 2015 में उन्होंने दलित स्टूडेंट की मदद के लिए भीम आर्मी का गठन किया था. साल 2017 के सहारनपुर दंगा के बाद उनकी सक्रियता बढ़ी और संगठन भी बड़ा बना. ट्विटर पर उनके 1.56 लाख फॉलोवर हैं. वह सोशल मीडिया पर आक्रामक तरीके से अपनी बात रखते हैं. इसका भी दलित युवाओं पर बड़े पैमाने पर असर है. राजनीतिक जानकार भी यूपी में उन्हें मायावती के मुकाबले रखकर ही देखते हैं. बाकी चंद्रशेखर की असली राजनीतिक ताकत तो चुनाव परिणाम से पता चलेगा. इसके लिए साल 2022 की पहली तिमाही तक इंतजार करना होगा।


 


रिपोर्ट@त्रिलोकी नाथ