आरक्षण बचाओ के समर्थन में आर के चौधरी द्वारा राजधानी में निकाला गया पैदल मार्च



आरक्षण बचाओ के समर्थन में आर के चौधरी द्वारा राजधानी में निकाला गया पैदल मार्च



 


भाजपा सरकार भारतीय संविधान को नहीं बल्कि मनुस्मृति को ही अपना संविधान मानती है 


लखनऊ । आज दिनांक 20 फरवरी 2020 को प्रातः 11.30 बजे लखनऊ प्रेस क्लब में बी एस फोर द्वारा उ०प्र० पूर्व मंत्री आर के चौधरी ने आरक्षण बचाओ आंदोलन पर प्रेस वार्ता की जिसमे भारी संख्या में समर्थकों के साथ प्रेस क्लब से परिवर्तन चौक होते हुए हजरतगंज अंबेडकर प्रतिमा तक पैदल मार्च निकाला, पैदल मार्च में उ०प्र० शराब बंदी समिति के अध्यक्ष मुर्तजा अली व समाजसेविका सैयद ज़रीन भी शामिल हुई, पूर्व मंत्री आर के चौधरी ने वार्ता में कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण फैसला 7 फरवरी 2020 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हो गया दरअसल आरएसएस और उसकी भाजपा सरकार की सोच दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग विरोधी है इस सरकार की घटिया दलील के कारण ही आरक्षण विरोधी ऐसा फैसला हो सका आरक्षण के सहारे दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग राष्ट्र की मुख्यधारा में जुड़ने लगा है वर्ग व्यवस्था से मुक्ति पाकर अब ये समाज समतामूलक भारत का हिस्सा बनने लगा था परंतु आरएसएस और उसकी भाजपा सरकार को सामाजिक बराबरी बर्दाश्त नहीं है जिस समाज को सदियों तक शिक्षा, संपदा, संसाधनों के अधिकार से वंचित रखा गया वो समाज दीन हीन बन कर जानवरों से बदतर जीवन जीने लगा, यही समाज आरक्षण के सहारे बराबरी का दर्जा पाने लगा, ये बात आर एस एस और भाजपा को खटकने लगी, आरएसएस और भाजपा सरकार भारतीय संविधान को नहीं बल्कि मनुस्मृति को ही अपना संविधान मानती है । संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर को संविधान लागू करने वालों पर संदेह था, संविधान सभा में उन्हें कहना पड़ा था कि संविधान चाहे कितना ही अच्छा हो उसे लागू करने वाले अच्छे न हो तो अच्छा संविधान भी बुरा होगा यदि लागू करने वाले अच्छे हो तो संविधान अच्छा होगा, दलितों और पिछड़ों को आरक्षण आवश्यक है ये आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक दलित और सामाजिक और शैक्षिक तौर पर उच्च वर्ग के बराबर न आ जाए, भारतीय संविधान की यही मूल भावना है, पच्चासी प्रतिशत के करीब आबादी वाले दलित पिछड़े वर्ग को साथ लिए बिना भारत को एक समृद्धिशाली राष्ट्र बनाने का सपना साकार होना संभव नहीं होगा, संवैधानिक शीर्ष पदों पर बैठे भारत के गद्दारों को अमेरिका के भागीदारी फार्मूले से सबक लेना चाहिए, अमेरिकी सत्ता ने सत्रहवीं सदी में अफ्रीका से आए अश्वेतों को शिक्षा संपदा साधनों में उनकी आबादी के अनुसार हिस्सेदारी देकर एक समृद्ध अमेरिका का निर्माण कर लिया, परंतु भारत में आरएसएस की भाजपा सरकार यहां के मूल निवास दलितों और पिछड़ों को गुलाम बनाए रखना चाहती है, बीएसफोर (भारतीय संविधान संरक्षण संघर्ष समिति) इस दबे कुचले और पिछड़े - पिछाडे गए समाज के अधिकार के लिए निर्णायक आंदोलन करेगी ।


रिपोर्ट @ आफाक अहमद मंसूरी